Jan 29, 2009

तबियत का शायर


कृति- चौमास
विधा- कविता
कवि- राजगोपाल सिंह
प्रकाशक- अमृत प्रकाशन
गीत की लय और ग़ज़ल की नाज़ुक बयानी के महीन धागे जहाँ बिना कोई गाँठ लगाए एक-दूसरे से जुड़ते हैं। वहीं से उठती हैं कवि राजगोपाल सिंह की रचनाएँ। गीत और ग़ज़ल के पिछले चार दशक के सफ़र में राजगोपाल सिंह ऐसे बरगद के पेड़ हैं, जिनकी छाँव में हरेक गीत और ग़ज़ल सुनने वाला और कहने वाला ज़रूर कुछ पल सुस्ता के आगे बढ़ा है।
यूँ तो ग़ज़ल कहने के बारे में बहुत-सी बातें कही और सुनी जाती हैं पर यहाँ मैं वह कहना चाहूंगा जो निश्तर ख़ानकाही ग़ज़ल के विषय में कहते हैं। वे कहते हैं कि जब भी कोई ग़ज़ल संग्रह मेरे हाथ में आता है तो मैं सबसे पहले ग़ज़लों के लिए प्रयोग किए गए क़ाफ़िए देखता हूँ और जानने की क़ोशिश करता हूँ कि ग़ज़लकार क़ाफ़िए को अपना ख़याल दे रहा है या ख़ुद क़ाफ़िए के आगे हाथ जोड़े खड़ा है।
अगर इस नज़रिए से राजगोपाल जी की ग़ज़लें सुनी जाएँ तो वे हमें एक ऐसे सफ़र पर ले जाती हैं जिसका अगला स्टेशन कौन-सा होगा; ये अंदाज़ा हम नहीं लगा सकते। या यूँ कहें कि किसी फ़कीर का फ़लसफा है उनकी ग़ज़लें, जो ज़मीन से आसमान को, साकार से निराकार को जोड़ती चलती हैं। उनकी ग़ज़लों में महज़ क़ाफ़िया पैमाई नहीं है। उनकी ग़ज़लें गहरे ख़यालों और सहज क़ाफ़ियों से एक ऐसी झीनी-सी चादर बुनती हुई चलती हैं, जिसको ओढ़ लेने पर दुनिया की हक़ीकत और खुलकर उजागर होती हैं-
मौन ओढ़े हैं सभी, तैयारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी, चिन्गारियाँ होंगी ज़रूर
आज भी आदम की बेटी, हंटरों की ज़द में है
हर गिलहरी के बदन पर धारियाँ होंगी ज़रूर
या
यह भी मुमकिन है ये बौनों का नगर हो इसलिए
छोटे दरवाज़ों की ख़ातिर अपना क़द छोटा न कर
राजगोपाल सिंह जी ने ग़ज़ल को नए तेवर से सजाया भी, सँवारा भी और ज़रूरत पड़ने पे बड़ी बेतक़ल्लुफ़ी से इसे अपने मुताबिक़ ढाला भी-
गिर के आकाश से नट तड़पता रहा
सब बजाते रहे जोश में तालियाँ
मेरे आंगन में ख़ुशियाँ पलीं इस तरह
निर्धनों के यहाँ जिस तरह बेटियाँ
मैं हूँ सूरज, मेरी शायरी धूप है
धूप रोकेंगी क्या काँच की खिड़कियाँ
उनके लेखन में हमारी संस्कृति की विरासत है। समाज में व्याप्त रूढ़ियों से जूझते आदमी की घुटन है और बुराई के सामने सीना तानकर खड़े होने का हौसला है। उनकी ग़ज़लों में कहीं किसी हसीं हमसफ़र से हाथ छूट जाने की कसक है, तो कहीं मन की गहराइयों में करवटें लेते और बार-बार जीवन्त हो उठते गाँव के नुक्कड़ हैं, गाँव की गलियाँ हैं, पुराना पीपल है, बूढ़ा बरगद है और माँ के ऑंसुओं से नम उसका ममता से भरा ऑंचल है। और हम सबके साथ अपने दर्द को मुस्कुराते हुए कहने का अनोखा अंदाज़ भी है-
वो भी तो इक सागर था
एक मुक़म्मल प्यास जिया
अधरों पर मधुमास रही
ऑंखों ने चौमास जिया
'चौमास' राजगोपाल सिंह जी की ग़ज़लों, गीतों और दोहों का एक ऐसा संग्रह है जिसमें चुन-चुन कर उनकी वे रचनाएँ रखी गई हैं जो शिल्प, कथ्य और भाव की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं और जन गीतों का दर्जा पा चुकी हैं। एक आम आदमी की पीड़ा को उसी के शब्दों में कह कर राजगोपाल सिंह जी आज सच्चे जनकवि बनकर सामने खड़े हैं-
न आंगन में किसी के तुलसी
न पिछवाड़े नीम
सूख गए सब ताल-तलैया
हम हो गए यतीम
उनके गीत ढहती भारतीय संस्कृति की विरासत को बचाकर गीतों में संजोकर आने वाली पीढ़ी के सामने एक ऐसा साहित्य रखने की उत्कंठा से भरे हैं, जो सदियों तक भारत के जनमानस पर छाया रहेगा। और एक समय कहा जाएगा कि यदि सच्चा गाँव, सच्चा भारत, सच्चे रिश्तों को देखना हो, उनकी सौंधी गंध पानी हो, तो एक बार जनकवि राजगोपाल सिंह की रचनाओं को पढ़ो। उनकी दुनिया में विचरण करो, तुम्हें भारत की सच्ची झाँकी दिखाई देगी।
-विवेक मिश्रा

Jan 3, 2009

नयी पीढ़ी की सृजनशीलता का एक गुलदस्ता


कृति- पहली दस्तक
विधा- कविता
संपादन- चिराग जैन (9311573612)
प्रकाशक- पाँखी प्रकाशन
मूल्य- 120/-

प्रत्येक संस्थान में नयी प्रतिभाओं की हमेशा दरकार रहती है। काव्य जगत् भी इस सत्य से अछूता नहीं है। हर दौर में नये रचनाकारों का समाज ने मुक्त हृदय से स्वागत किया है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चिराग जैन ने 15 युवा कवि-कवयित्रियों की रचनाओं का संकलन किया है।
अलग-अलग तेवरों की रचनाओं की इस संकलन में मौज़ूदगी यह सिद्ध करती हैं कि हिंदी कवि-सम्मेलन मंच पर भविष्य में सभी रस और रंग देखने को मिलते रहेंगे। संकलन के पहले कवि और संपादक चिराग जैन की रचनाओं में प्रेम की पवित्रता का एहसास भी है और संवेदना की छुअन भी। माँ के व्यक्तित्व को वैराट्य से जोड़ते हुए चिराग कहते हैं-
मेरी अनपढ़ माँ
वास्तव में अनपढ़ नहीं है
वह बातचीत के दौरान
पिताजी का चेहरा पढ़ लेती है।

उधर नील अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं-
आज मेरे इस पागल मन को
दादी माँ से
परियों वाली
नन्हीं-मुन्नी चिड़ियों वाली
गुड्डे वाली, गुड़ियों वाली
सात रंग के सपनों वाली
एक कहानी फिर सुननी है

प्रेम की संवेदनाओं को स्पर्श करती पंक्तियों के साथ मीनाक्षी जिजीविषा बड़ी सादगी से कहती हैं-
तुमसे परिचय
जैसे बचपन के खेल-खेल में
ज़िंदगी अचानक
पीछे से पीठ पर हाथ रखे
और धीरे से कान में कहे....
धप्पा....!

संबंधों के वैभत्स्य की ओर इंगित करते हुए रश्मि सानन शेर कहती हैं=
तेरी यादें भुलाना चाहती हूँ
मैं दो पल मुस्कुराना चाहती हूँ

ग़रीबी और भूख के नंगे सच को गायत्री भानु कुछ इस अन्दाज़ में बयाँ करती हैं-
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे पहली लड़ाई है
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई है
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे लंबी लड़ाई है

अनुत्तरित प्रश्न में नीरजा चतुर्वेदी अपने मन की पीड़ा को धीरे से कहती हैं-
जब तुम
मुझे छोड़
यहाँ से वहाँ चले गये थे
सच कहती हूँ
तुम्हारे संग
मेरे कितने सावन
चले गये

नारी मन की अनुभूतियों को हौले से अभिव्यक्त करते हुए शशिकांत सदैव ने बेबाक़ी से कहा-
शायद पुरुष
सदा स्वर्ग की कामना करता है
और स्त्री
सिर्फ़ कामना नहीं करती
स्वर्ग बनाने की
क़ोशिश में लगी रहती है

संवेदनाओं के साथ-साथ गुदगुदी और ठहाकों की गूंज भी इन कवियों की रचनाओं में पर्याप्त मात्रा में थी। पुलिसिया भ्रष्ट्राचार पर तन्ज़ करते हुए विनोद विक्रम लिखते हैं-
कॉन्स्टेबल की भर्ती के हमने भी फ़ार्म भरे थे
एक तरह से हमने अपने तन-मन
मृत्यु के नाम करे थे
क्योंकी जिस दिन दौड़ थी हमारी स्पोर्ट्स ग्राउंड में
बेहोश होने लगे थे हम
पहले ही राउंड में
एक बार तो दिल ने कहा-
विनोद! हार जा प्यारे
पर हमको तो दिख रहे थे
ऊपर की कमाई के नोट करारे

वैवाहिक संबंधों के ख़ौफ़ को बयाँ करते हुए ब्रजेश द्विवेदी कहते हैं-
भैया अभी कुँवारे हो तो रहना अभी कुँवारे
तुम हो ऐसे क्वारे जिस पर दुनिया डोरे डाले

दीपक सैनी भी हास्य के माध्यम से राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को आड़े हाथ लेते हैं और नेता चालीसा की शुरुआत कुछ इस तरह करते हैं-
निज चरणों से नित्य आपने, लात देश को मारी
एक हाथ से वोट बटोरे, दूजे से चलाई आरी

राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत गीत में प्रीति विश्वास भारत की वंदना करती हुई नज़र आती हैं-
कण-कण तीर्थ करोड़ों बसते, क्षण-क्षण पर्व जहाँ है
कोई बतलाए दुनिया में ऐसा स्वर्ग कहाँ है

इसी भावना को अरुण अद्भुत ने कुछ ऐसे व्यक्त किया है-
शत्रुओं का सदा मुँह तोड़ देती है जवाब
किंतु मित्र की है मित्र माटी मेरे देश की
मातृ भू की रक्षा करें, मौत से कभी न डरें
ऐसे देती है चरित्र, माटी मेरे देश की

व्यंग्यपूर्ण शैली में सांस्कृतिक प्रदूषण पर लानत भेजते हुए हरमिन्द्र पाल कहते हैं-
जब मैंने सुना ये गाना
'जिगर मा बड़ी आग है, बीड़ी जलाना'
तो हैरान हो गया मैं
परेशान हो गया मैं
क्योंकि मैंने तो सुना था
कि जिगर की आग तो देशभक्तों में होती थी
जिन्होंने हँसते-हँसते देश के लिये जान दी थी

भगतसिंह की क़ुर्बानी याद करते हुए कलाम भारती कहते हैं-
भगतसिंह की क़ुर्बानी इतिहास भुला ना पाएगा
और तिरंगा सदियों तक गुणगान भगत का गाएगा

भारत के भविष्य के लिये आशावादी दृष्टिकोण रखने वाले अमरनाथ आकाश गीत लिखते हैं-
एक दिन भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा
अपनी खोई गरिमा को, फिर से वापस पा जायेगा

कुल मिलाकर पूरा संकलन ही श्रेष्ठ रचनाओं का एक पुलिंदा है।

पुनर्जन्म की वैज्ञानिक पुष्टि करती एक पुस्तक


कृति- बोर्न अगेन
विधा- शोध
लेखक- डॉ वाल्टर सेमकिव
अनुवादक- राजेन्द्र अग्रवाल एवं डॉ संध्या गर्ग
प्रकाशक- रिटाना बुक्स
मूल्य- 195/-


मृत्यु मनुष्य के लिये हमेशा ही एक अनबूझ पहेली रही है। मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है, क्या मरने के बाद आत्मा दोबारा जन्म लेती है, क्या मनुष्य अपने कर्मों का फल भोगने के लिये बार-बार जन्म लेता है और क्या किसी मनुष्य को अपना पिछला जन्म याद रह सकता है- ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न हमारे मानस् में कुलबुलाते रहते हैं।
ऐसे ही तमाम प्रश्नों का हल खोजती एक पुस्तक है बोर्न अगेन। अमरीकी चिकित्सक डॉ वॉल्टर सेमकिव ने विश्व के तमाम देशों के ऐसे मामलों पर शोध किया है, जिनमें किसी को उसके पिछले जन्म की स्मृतियाँ याद हों। भारत की प्रसिद्ध राजनैतिक, सिने और अन्य हस्तियों के पूर्वजन्मों की भी लेखक ने खोज की है। मूलतः अंग्रेज़ी भाषा में लिखी गयी इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद राजेन्द्र अग्रवाल और डॉ संध्या गर्ग ने किया है।
इस पुस्तक में हिंदी पाठकों को पुनर्जन्म के सिद्धांत और उसके प्रमाणों की जानकारी तो मिलेगी ही, साथ ही साथ भारत और पाकिस्तान में जन्मीं जानी-मानी हस्तियों के पूर्वजन्मों के विषय में भी रोचक और अश्चर्यजनक तथ्य जानने को मिलेंगे।
एपीजे अबुल कलाम, अमिताभ बच्चन, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, शाहरुख़ ख़ान और बेनज़ीर भुट्टो समेत कई हस्तियों के पूर्व जीवन की प्रामाणिक कहानी इस पुस्तक में आप पढ़ सकेंगे। जिन लोगों पर लेखक ने शोध किया है उनके चित्रों, आदतों, सोच और जीवनशैली में समानता के प्रमाण भी पुस्तक में समाविष्ट किये गये हैं।
लेखक ने सिद्ध किया है कि आत्माएँ एक जन्म से दूसरे जन्म तक लिंग, राष्ट्रीयता और धर्म परिवर्तन भी करती हैं। लेखक का मानना है कि यदि इस तथ्य को सभी जान और मान लें तो शायद इस धरती पर भौगोलिक विविधता, धर्म, भाषा और अन्य भेद-भाव को समाप्त करने में सहायता मिल सके।
पुस्तक पठनीय होने के साथ-साथ संग्रहणीय भी है।