Jan 3, 2009

नयी पीढ़ी की सृजनशीलता का एक गुलदस्ता


कृति- पहली दस्तक
विधा- कविता
संपादन- चिराग जैन (9311573612)
प्रकाशक- पाँखी प्रकाशन
मूल्य- 120/-

प्रत्येक संस्थान में नयी प्रतिभाओं की हमेशा दरकार रहती है। काव्य जगत् भी इस सत्य से अछूता नहीं है। हर दौर में नये रचनाकारों का समाज ने मुक्त हृदय से स्वागत किया है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चिराग जैन ने 15 युवा कवि-कवयित्रियों की रचनाओं का संकलन किया है।
अलग-अलग तेवरों की रचनाओं की इस संकलन में मौज़ूदगी यह सिद्ध करती हैं कि हिंदी कवि-सम्मेलन मंच पर भविष्य में सभी रस और रंग देखने को मिलते रहेंगे। संकलन के पहले कवि और संपादक चिराग जैन की रचनाओं में प्रेम की पवित्रता का एहसास भी है और संवेदना की छुअन भी। माँ के व्यक्तित्व को वैराट्य से जोड़ते हुए चिराग कहते हैं-
मेरी अनपढ़ माँ
वास्तव में अनपढ़ नहीं है
वह बातचीत के दौरान
पिताजी का चेहरा पढ़ लेती है।

उधर नील अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं-
आज मेरे इस पागल मन को
दादी माँ से
परियों वाली
नन्हीं-मुन्नी चिड़ियों वाली
गुड्डे वाली, गुड़ियों वाली
सात रंग के सपनों वाली
एक कहानी फिर सुननी है

प्रेम की संवेदनाओं को स्पर्श करती पंक्तियों के साथ मीनाक्षी जिजीविषा बड़ी सादगी से कहती हैं-
तुमसे परिचय
जैसे बचपन के खेल-खेल में
ज़िंदगी अचानक
पीछे से पीठ पर हाथ रखे
और धीरे से कान में कहे....
धप्पा....!

संबंधों के वैभत्स्य की ओर इंगित करते हुए रश्मि सानन शेर कहती हैं=
तेरी यादें भुलाना चाहती हूँ
मैं दो पल मुस्कुराना चाहती हूँ

ग़रीबी और भूख के नंगे सच को गायत्री भानु कुछ इस अन्दाज़ में बयाँ करती हैं-
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे पहली लड़ाई है
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई है
रोटी की लड़ाई
दुनिया की सबसे लंबी लड़ाई है

अनुत्तरित प्रश्न में नीरजा चतुर्वेदी अपने मन की पीड़ा को धीरे से कहती हैं-
जब तुम
मुझे छोड़
यहाँ से वहाँ चले गये थे
सच कहती हूँ
तुम्हारे संग
मेरे कितने सावन
चले गये

नारी मन की अनुभूतियों को हौले से अभिव्यक्त करते हुए शशिकांत सदैव ने बेबाक़ी से कहा-
शायद पुरुष
सदा स्वर्ग की कामना करता है
और स्त्री
सिर्फ़ कामना नहीं करती
स्वर्ग बनाने की
क़ोशिश में लगी रहती है

संवेदनाओं के साथ-साथ गुदगुदी और ठहाकों की गूंज भी इन कवियों की रचनाओं में पर्याप्त मात्रा में थी। पुलिसिया भ्रष्ट्राचार पर तन्ज़ करते हुए विनोद विक्रम लिखते हैं-
कॉन्स्टेबल की भर्ती के हमने भी फ़ार्म भरे थे
एक तरह से हमने अपने तन-मन
मृत्यु के नाम करे थे
क्योंकी जिस दिन दौड़ थी हमारी स्पोर्ट्स ग्राउंड में
बेहोश होने लगे थे हम
पहले ही राउंड में
एक बार तो दिल ने कहा-
विनोद! हार जा प्यारे
पर हमको तो दिख रहे थे
ऊपर की कमाई के नोट करारे

वैवाहिक संबंधों के ख़ौफ़ को बयाँ करते हुए ब्रजेश द्विवेदी कहते हैं-
भैया अभी कुँवारे हो तो रहना अभी कुँवारे
तुम हो ऐसे क्वारे जिस पर दुनिया डोरे डाले

दीपक सैनी भी हास्य के माध्यम से राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार को आड़े हाथ लेते हैं और नेता चालीसा की शुरुआत कुछ इस तरह करते हैं-
निज चरणों से नित्य आपने, लात देश को मारी
एक हाथ से वोट बटोरे, दूजे से चलाई आरी

राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत गीत में प्रीति विश्वास भारत की वंदना करती हुई नज़र आती हैं-
कण-कण तीर्थ करोड़ों बसते, क्षण-क्षण पर्व जहाँ है
कोई बतलाए दुनिया में ऐसा स्वर्ग कहाँ है

इसी भावना को अरुण अद्भुत ने कुछ ऐसे व्यक्त किया है-
शत्रुओं का सदा मुँह तोड़ देती है जवाब
किंतु मित्र की है मित्र माटी मेरे देश की
मातृ भू की रक्षा करें, मौत से कभी न डरें
ऐसे देती है चरित्र, माटी मेरे देश की

व्यंग्यपूर्ण शैली में सांस्कृतिक प्रदूषण पर लानत भेजते हुए हरमिन्द्र पाल कहते हैं-
जब मैंने सुना ये गाना
'जिगर मा बड़ी आग है, बीड़ी जलाना'
तो हैरान हो गया मैं
परेशान हो गया मैं
क्योंकि मैंने तो सुना था
कि जिगर की आग तो देशभक्तों में होती थी
जिन्होंने हँसते-हँसते देश के लिये जान दी थी

भगतसिंह की क़ुर्बानी याद करते हुए कलाम भारती कहते हैं-
भगतसिंह की क़ुर्बानी इतिहास भुला ना पाएगा
और तिरंगा सदियों तक गुणगान भगत का गाएगा

भारत के भविष्य के लिये आशावादी दृष्टिकोण रखने वाले अमरनाथ आकाश गीत लिखते हैं-
एक दिन भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा
अपनी खोई गरिमा को, फिर से वापस पा जायेगा

कुल मिलाकर पूरा संकलन ही श्रेष्ठ रचनाओं का एक पुलिंदा है।

1 comment:

Smart Indian said...

विवेक जी इस समीक्षा के लिए धन्यवाद. धन्यवाद. आपकी और चिराग की रचनाएं तो पढता रहा हूँ. आपको हिन्दयुग्म के पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भी काफी सुना है. आशा है की आप लोगों की और भी पुस्तकें आयेंगी. नव वर्ष की शुभकामनाएं!