Jun 16, 2010

सच्ची संवेदनाओं की ईमानदार कविताएं

कविता संग्रह - शब्द उस पार के
कवि - शिवचरण सिंह 'पिपिल
प्रकाशक - शिल्पायन
मूल्य - 150/-


शिवचरण सिंह जी का काव्य-संकलन उनके हृदय में गहरे तक पैठ किए बैठे लोक संस्कारों और समाज के वंचित वर्ग के लिए सच्ची संवेदनाओं से उपजे भावों के लोक गीतों की धुनों में ढलने से बना उनके गीतों की भाषा माटी की महक, नीम की छाँव, गाँव की पगडंडियों में उड़ती धूल और अन्न के अभाव में बुझे चूल्हे से उठती भाप से बनती है। इनका व्याकरण क़लम-किताब छोड़कर मज़दूरी करते हाथों से, किसानों के घरों में भूखे-बिलखते अबोधों की चीख़ से और कमर तोड़ मेहनत करके आधे पेट खाकर घर की इज़्ज़्त ढाँकती, मुस्कुराती स्त्री की आँखों से छलछला उठे आसुँओं से निर्मित होता है।
शिवचरण जी ने बाल मज़दूरों को पुनः क़लम-किताब थमाने और उनको पुनः उनके घर-परिवार से मिलाने में अपने कार्यकाल में महत्वपूर्ण काम किया है और आज भी वह कई सामाजिक संस्थाओं साहित्य के माध्यम से उन बच्चों के लिए निरन्तर काम कर रहे हैं। उनकी कविताओं और गीतों में जनगीत बनने की पूरी ताक़त है। वे आम आदमी की भाषा में आम आदमी की बात कहते हैं, जो शोषित और दलित वर्ग के ज़ख़्मों पर मरहम और सत्ता और शासक के मुँह पर तमाचे का काम एक साथ करती है। वह ग़रीबी और उससे जुड़े छद्म सामाजिक सरोकारों सरकारी योजनाओं और झूठे विकास के दावों की कलई खोल कर रख देते हैं और कई स्थानों पर तो वह इसके लिए काव्य की भाषा और उसकी लय ही नहीं अपने कवित्व को भी उठाकर ताक पर रख देते हैं, पर उनके कथ्य मे सच्चाई है, ईमानदारी है और इन दोनों को आगे भी बनाए रखने की मंशा है।
उनकी कविता के नायक सिर पर मोर-पंखी सजाए, हाथ में बंसी लिए, सोने की पायल की छम-छमके साथ आँगन में खेलते बाल-कृष्ण नहीं हैं। उनकी कविता के नायक रैंता, पैंता और पलैंता जैसे मिट्टी-कीचड़ में सने सड़कों पर नंग-धड़ंग दौड़ते, कचरे से खाना ढूँढ़ते वे बच्चे हैं जिनके पैदा होने के बाद उनके माँ-बाप के पास उनका नाम रखने की फ़ुर्सत भी नहीं रही। उन्हें किसी ने मुस्कुराते हुए एक पल रूक कर नहीं देखा, जिन्होंने पेट भरने के लिए कब मज़दूरी शुरू की उन्हें ख़ुद भी याद नहीं। शिवचरण जी की आवाज़ को चहुँओर से समर्थन मिले, समाज से बाल मज़दूरी समाप्त हो। शोषित महिलाओं में स्त्री सशक्तिकरण की आवाज़ बुलन्द हो। इन गीतों को गुनगुनाता कोई बंजारा कभी आपको किसी रास्ते में मिले, ऐसी इच्छा के साथ, इस संग्रह के प्रकाशन के लिए शुभकामनाएँ।
-विवेक मिश्र


1 comment:

khurdiya ka paigaam said...

kavi \ gitear shiwcharan singh 66 pipil 99 ka *kawya sangrah * shabad us paar ke padhane ka moka mila\ yah sab patrcar, lekhak shathi dinesh awinashi ke karan ho saka |IS SHEREYA TO UNKO JATA HE \ UNHI KE KARAN BEHATRIN WAKTAON KO SUNNE KA AAWASHAR BHI MILA|
SHABAD US PAAR KE KAWYA SANGRAH ME HAMARE DESH DALIT SAMAJON KI JHANKI KI EK JHALAK DEKHNE KO MILTI HE\ BHALA HI KAVI KE KAWYA SANGRAH ME MANOGAT ISTITHI DEKHNE KO MILI OR JAMANA BADALNE WALON KO SAMARPIT KAR KE WASTUGAT ISTITHI KI RAAH AASHAN KAR DE | EESE LOGON KO PRERIT KIYAHE HE| YAHI KAWAYA SANGRAH KA MHARM HE|
RACHNAKAR SWABHAW SE HI KARATI KARI HOTA HE |JISAME YAH JHALAK, LALAK NAHI DIKHE WO SHAHITYA KAR, RACHNAKAR HO HI NAHI SAKATA |
BHARTIYA SAMAJ OR SANSKRITI LEKHEN ME HAMARE DESH KE AADIWASHI, DALIT SAMATON OR UNKI SANSKRITYON KE LIYE KOI JAGAH NAHI HE |NA UNKE HONE KA ULLEKH HOTA HE | NAA UNKE VINASH KA ETIHAAS |
EASE SAMAJ HAMESHA HASHIYE PAR HOTE HE| PARNTU , PIPIL JI KE KAWYA SANGRAH ME ENKI CHARCHA TO HE | YAH KAVITAON KI SHARTHAKTA KO WYAKAT KARTAH HE | THANK YOU VIECHNA JI !