Aug 10, 2010

कंदील की रोशनी में, सच को उघाड़ती कविताएं - विवेक मिश्र















कंदील की रोशनी में, सच को उघाड़ती कविताएं - विवेक मिश्र
(www.vivechna.blogspot.com)


स्त्री विमर्श के घेरे में आती तमाम चिन्ताओं को रेखांकित करती, दोहराती, उनका पुनःपाठ करती और अब उन चिन्ताओं के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने के लिए, स्त्रियों से आह्वान करती, एक मुखर स्वर की कविताएं हैं, कवयित्री कुन्ती के कविता संग्रह 'अंधेरे में कंदील' में। वह कहती हैं -
अब बीती बातों को
भुलाने की बात नहीं
ज़रूरत है/ बार-बार दोहराने की
कुन्ती कथ्य और शिल्प के स्थापित फ़ॉर्मेट के ढर्रे में चल कर कविताएं नहीं लिखती। वह बिना किसी वाग्जाल के, सीधे नारी अन्तःकरण की पीड़ा को व्यक्त करती हैं -
तुम कहते हो कविता
तो कह लो
यह आर्तनाद है! ……उस स्त्री का
जिसे लाया गया कई बार
कसाईखाने में!
कुन्ती ने अपनी कविताओं से स्त्री विमर्श के विभिन्न अंधियारे कोनों में, नारी शोषण के ख़िलाफ़ यहाँ-वहाँ, जलती-बुझती रोशनी को समेट कर, एक कंदील जलाई है, जो धीरे-धीरे मशाल में तब्दील होती लगती है -
हज़ारों अंधेरे
अपने आप में समेटे हुए
ठिठुरते हाथों में, थामे हैं
वो जगमगाता कंदील
पर उसकी एक भी किरण
उस पर नहीं पड़ती।
इस संग्रह में कुन्ती ने न केवल दलित, शोषित, अनपढ़ और पिछड़ी महिलाओं की समस्याओं की बात की है, बल्कि पढ़ी-लिखी, कामकाजी, नए समय और विकास के साथ तालमेल बिठाती महिलाओं के मन में भी झाँका है -
यूँ तो कहने को तुमने
मेरे जीवन के
अधिकतम पृष्ठ पढ़े हैं।
फिर भी यही कहते रहे
कि नहीं समझ पाया तुम्हें अब तक
………पर तुमने
पढ़ना ही मुझे
अंतिम पृष्ठ से शुरू किया था।
इस संग्रह की कविताओं में विविधता है पर इनके केन्द्र में नारी जीवन की समस्याएं, उसका दुख-दर्द और कहीं-कहीं उसमें दबी-छुपी बदलाव की एक हल्की सी उम्मीद है। पर अभी भी वह, ये बदलाव अपनी स्त्री मन की कोमलता के साथ, अपने रिश्तों और उनके वर्तमान सामाजिक ताने-बाने के साथ ही पाना चाहती है। वह चाहती है उसके आस-पास का वातावरण, समाज, परिवार, व्यक्ति सब इस बदलाव की ज़रूरत को महसूस करें। न कि वह अकेली परिवर्तन की ओर, इन सबको पीछे छोड़ती हुई, आगे बढ़े। इसीलिए वह कहती है -
समय के स्लेट पर/
वर्तमान की क़लम से तुम/
इतना भर लिख दो/
कि रोशनी तेरे लिए भी है/बस/
सुबह तक इन्तज़ार कर।
कुन्ती की कविताओं में सामाजिक परिवर्तन की उम्मीद है। उनकी उम्मीद, बदलाव की मशाल बने। इसी इच्छा के साथ………

- विवेक मिश्र -
(www.vivechna.blogspot.com)

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