'अमिट ह्स्ताक्षर' - पद्मश्री वीरेन्द्र प्रभाकर जी के द्वारा लिए गए छायाचित्रों के माध्यम से, एक बीते युग का सफ़र है।
'अमिट हस्ताक्षर' वीरेन्द्र प्रभाकर जी के लम्बे फ़ोटोग्राफ़ी के कैरियर में लिए गए उन दुर्लभ चित्रों की झाँकी है, जिनमें देश का पिछले पचास सालों में बदलता चेहरा सामने आता है। संग्रह में वीरेन्द्र प्रभाकर जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते कई लेख भी हैं।
प्रकाशन की दृष्टि से इतने सारे चित्रों को इतने वर्षों तक संजोकर के रखना और उन्हें संयोजित कर पुस्तक का रूप देना सचमुच ही सराहनीय कार्य है। पुस्तक में चित्रों के माध्यम से आज़ादी के पहले गाँधी जी के समय से लेकर आजतक के आधुनिक भारत की तस्वीरें हैं।
चित्रों के चयन एवं संपादन में व्यक्तियों को अधिक महत्व दिया गया है। संग्रह में आम आदमी के, दर्शनीय स्थलों के एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के चित्रों का सर्वत्र अभाव है। ऐसा नहीं कि साठ सालों के सफ़र में वीरेन्द्र जी के कैमरे की आँख को सत्ता के गलियारों से बाहर झाँक कर गाँव में बसे असली भारत को देखने का मौक़ा न मिला हो, पर संग्रह में कैमरे की आँख सत्ता के गलियारों में ही भटकती रहती है, इसीलिए संग्रह में उन्हीं लोगों के चित्रों की अधिकता दिखाई देती है जो लम्बे समय तक सत्ता में या इसके आस-पास रहकर ही देश की सेवा करते रहे हैं। कुछ चित्रों का रेसोल्युशन कम है जो छपने पर बदरंग लगते हैं, उन्हें प्रकाशन से पहले ठीक किया जाना चाहिए था।
संग्रह में संग्रहीत चित्र प्रभावित तो करते हैं, परन्तु कहीं न कहीं भारत की भव्यता को प्रदर्शित करते हुए उसकी आत्मा को छूने में चूक जाते हैं।
प्रकाशन की दृष्टि से इतने सारे चित्रों को इतने वर्षों तक संजोकर के रखना और उन्हें संयोजित कर पुस्तक का रूप देना सचमुच ही सराहनीय कार्य है। पुस्तक में चित्रों के माध्यम से आज़ादी के पहले गाँधी जी के समय से लेकर आजतक के आधुनिक भारत की तस्वीरें हैं।
चित्रों के चयन एवं संपादन में व्यक्तियों को अधिक महत्व दिया गया है। संग्रह में आम आदमी के, दर्शनीय स्थलों के एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के चित्रों का सर्वत्र अभाव है। ऐसा नहीं कि साठ सालों के सफ़र में वीरेन्द्र जी के कैमरे की आँख को सत्ता के गलियारों से बाहर झाँक कर गाँव में बसे असली भारत को देखने का मौक़ा न मिला हो, पर संग्रह में कैमरे की आँख सत्ता के गलियारों में ही भटकती रहती है, इसीलिए संग्रह में उन्हीं लोगों के चित्रों की अधिकता दिखाई देती है जो लम्बे समय तक सत्ता में या इसके आस-पास रहकर ही देश की सेवा करते रहे हैं। कुछ चित्रों का रेसोल्युशन कम है जो छपने पर बदरंग लगते हैं, उन्हें प्रकाशन से पहले ठीक किया जाना चाहिए था।
संग्रह में संग्रहीत चित्र प्रभावित तो करते हैं, परन्तु कहीं न कहीं भारत की भव्यता को प्रदर्शित करते हुए उसकी आत्मा को छूने में चूक जाते हैं।
- विवेक मिश्र -
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