Apr 27, 2009

कविता संग्रह 'तुम ही कोई नाम दो' - नमिता राकेश



नारी मन की संवेदनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति होते हुए भी पूर्णरूपेण नारी विमर्श की कविताएँ नहीं हैं, नमिता राकेश के कविता संग्रह 'तुम ही कोई नाम दो' में।

नमिता राकेश के भीतर की कवियित्री पहले एक इंसान है फिर एक नारी, इससे उनकी कविताओं में अपने समय को देखने की एक समग्र दृष्टि एवं विषय वैविध्य दिखाई देता है, पर अपने इस गुण के साथ अपने भाव की अभिव्यक्ति में वह पूरी तरह एक नारी मन की कोमलता से काम लेती हैं, जो उनकी कविताओं को उनके समय की कवियित्रियों से अलग खड़ा करती है।
कुछ नहीं पाती
सिवाय आत्म संतुष्टि के
क्या मोमबत्ती में
नहीं हैं लक्षण
एक माँ होने के
इस संग्रह की कविताएँ नारी के पक्ष में खड़ी होकर पुरूष एवं पुरुष प्रधान समाज के ख़िलाफ़ झंडा नहीं उठातीं, बल्कि स्त्री एवं के पुरुष दोनों के अस्तित्व को उनके गुण-दोषों के साथ स्वीकार करती हैं एवं साथ-साथ चलकर अपने समय के समाज का चेहरा ही नहीं उसकी आत्मा भी बदलना चाहती हैं।
दिन भर की मेहनत के बाद
अभी-अभी सोया है
धरती के बिछौने पर
आकाश को लपेटे हुए
वह देखो वहाँ सोया है
मेरे देश का कर्णधार
बंद कर दो यह कोलाहल
थोड़ा उसे सोने दो
उसे काम करना है
संवारना है वर्तमान
॰॰॰॰॰॰और भविष्य देश का।

नमिता अपने सफ़र में अकेली नहीं हैं, वह अपने घर, परिवार और समाज के साथ चलती हैं, पर इस सफ़र में वह अपने हमसफ़र से सवाल करना नहीं भूलतीं।

समय की रेत पर
तुम्हारे पद चिन्हों के पीछे-पीछे
मैं भी चलती चली गई
चुपचाप, आँखे मूंदे हुए॰॰॰॰॰
तुम्हारी मेरे प्रति बेफ़िक्री
ख़ैर जो भी हो
तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो
क्या तुम भी चल सकते हो
मेरे पद चिन्हों पर?
मेरे पीछे?
चुपचाप आँखे मूंदे?

नमिता ने प्रेम कविताएँ भी लिखी हैं पर वे भी बहुत सजग एव सधी हुई अभिव्यक्ति के साथ आगे बढ़ती हैं। उनमें अतिश्योक्तिपूर्ण भावाभिव्यक्तियाँ नहीं हैं, वह आज की उस नारी का प्रेम है जो अपने नारीत्व से एवं उसकी शक्ति से परिचित है।
मैं एक समुद्र हूँ
न जाने अपने में
क्या-क्या छिपाए
मोती, सीप, चट्टानें, पत्थर
तुम चाहो तो गोताखोर बन सकते हो
उतर कर उसकी गहराई में
ढूँढ सकते हो मोती
पा सकते हो बहुत कुछ
या किनारे से ही
फेंक सकते हो पत्थर
और खा सकते हो छींटे ॰॰॰॰ खारे पानी के

नमिता की कविताओं में सच्चे मोती छुपे हैं पर वे भाषाई करिश्मों के, साहित्यिक आडम्बरों के या अलंकारों की चमक वाले मोती नहीं हैं। वे गहन अभिव्यक्ति के, सच्चे अनुभवों के, कवि मन में बसी स्मृतियों के मोती हैं। इसलिये आडम्बरों के और प्रतिमानों के किनारे बैठ कर नमिता की कविताओं को टटोलने वालों को समुद्र के खारे पानी के छींटे ही मिलेंगे। संग्रह में एक लम्बी कविता 'पहल' है जो कवियित्री के लेखन के भविष्य की ओर इशारा करते हुए एक नई उम्मीद बंधाती है, जिसमें कविता महज़ कविता न रहकर एक आह्वान बन जाती है। नमिता अभी लिख रही हैं, इसलिए आने वाले समय में कई सोपान पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होंगे। इसी आशा के साथ

- विवेक मिश्र

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